Fodder Crop Management : गर्मी और चारे की कमी का सीधा असर पशुओं के स्वास्थ्य पर पड़ता है। इसलिए गर्मीयों में ग्रीष्मकालीन फसलों के साथ-साथ चारे की फसलों की भी व्यवस्था करना जरुरी है। मक्का, बाजरा, घास जैसी चारा फसलें लेनी चाहिए। जिससे मई और जून के महीने में चारे की कमी नहीं होती। गर्मी के मौसम में आवश्यकता के समय चारा उपलब्ध रहे इस दृष्टि से योजना बनानी चाहिए।
चारे की कमी का सबसे बड़ा असर दूध उत्पादन पर पड़ता है। इसलिए अगर दूध की कीमत बढ़ती भी है तो इसका सीधा फायदा किसानों को नहीं होता है। हरे चारे की कमी के कारण उसके दाम बढ जाते है। दुधारू पशुओं को हरे चारे की आवश्यकता होती हैं। संतुलित पशु पोषण की दृष्टि से संयुक्त चारा उत्पादन महत्वपूर्ण है और इसके लिए अलग-अलग चारा फसलों की योजना बनाना आवश्यक है।
लगातार प्रचुर मात्रा में और उत्कृष्ट गुणवत्ता वाला चारा प्राप्त करने के लिए अनाज की फसल की तरह ही चारा फसल की खेती की योजना बनाई जानी चाहिए।चारा फसल की खेती के लिए उपयुक्त चारा फसल का चयन, भूमि का चयन, खेती, उपयुक्त किस्म का चयन, उर्वरक और जल प्रबंधन पर विचार करना चाहिए।