pink bollworm : कपास की फसल पर बड़े पैमाने पर बॉलवर्म का प्रकोप देखा गया है। किसानों का कहना है कि बॉलवर्म पकी हुई फलियों पर हमला कर नुकसान पहुंचाएंगी।
उत्पादकों के लिए सबसे बड़ा डर बॉलवर्म है। बोलवर्म पत्तियों, फूलों और बीजकोषों को खाता है। बॉलवर्म के बढ़ते प्रकोप से न केवल उपज घटती है बल्कि अन्य फसलें भी प्रभावित होती हैं। अब तक एक नहीं कई समाधान सामने आ चुके हैं, लेकिन खतरा टला नहीं है। कीड़ा लगने से भारी क्षति की आशंका बढ़ती जा रही है।
कपास को सफेद सोना कहा जाता है। लेकिन पिछले कई सालों से इस सफेद सोने पर ‘गुलाबी ग्रहण’ लगता दिख रहा है। विशेषज्ञों ने राय व्यक्त की है कि पिंक बॉलवॉर्म के प्रकोप और अन्य कारणों से इस साल देश में कपास का उत्पादन कम हो जाएगा। यह कपास के लिए बहुत हानिकारक कीट है। यह कीड़ा बीजांड के अंदर रहता है और बाहर से संक्रमण का कोई लक्षण नहीं दिखाता है। इसके लिए सावधानी बरतना और बॉलवर्म का प्रबंधन करना जरूरी है।
कपास पर बॉलवर्म संक्रमण के कारण:
• कपास की खेती के क्षेत्र में वृद्धि।
• कच्चे कपास का दीर्घकाल भंडारण।
• खेत में फसल अवशेषों का भंडारण।
• कपास की जल्दी बुआई।
• आश्रय फसल कतारें न लगाना।
• सही समय पर बोलवर्म का प्रबंधन करने में विफलता।
व्यवस्थापन :
• कपास पर मोनोक्रोटोफॉस और एसीफेट कीटनाशकों या उनके मिश्रण का छिड़काव कपास के विकास को बढ़ावा देता है।
• मौसम ख़त्म होने के बाद जानवरों या बकरियों, भेड़ों को खेत में चरने के लिए छोड़ देना चाहिए।
• खेत में फसलों के अवशेषों को उठाकर जला देना चाहिए।
• फसल चक्र अपनाना चाहिए। सन, भिंडी जैसी फसलों की कटाई कपास से पहले या बाद में नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इससे इस बॉलवर्म का जीवन चक्र बाधित हो जाएगा।